आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने के लिए जटामांसी का काफी किया जाता है जैसे कि इत्र बनाने, दवाई बनाने और हवन सामग्री बनाने के के लिए । इसके बारे बेहद ही कम लोग जानते हैं, जिसके कारण बेहद कम लोग ही इसका सेवन करते हैं ।अलग-अलग बिमारियों के उपचार के लिए जैसे कि सिर दर्द, गठिया, स्पर्म, पेट फूलना, उल्टी, खांसी, वात, पित्त, कफ और भी काफी कुछ । इन्सान अपने हिसाब से ही किसी बीमारी को ठीक करने के लिए इसका सेवन करता है और इसका सेवन करने से पहले पता होना चाहिए कि जटामांसी की तासीर कैसी होती है ।

अधिकतर लोग आयुर्वेद को मानते हैं और उसके अनुसार जटामांसी ठंडी तासीर की मानी जाती है । जिसके कारण वात दोष, पित्त दोष, कफ दोष के अलावा कई समस्या को ठीक करने में यह लाभदायक है । इसका मतलब गर्मियों के मौसम में इसका सेवन करना काफी लाभदायक साबित होगा क्योंकि इससे पेट में फैलने वाली गर्मी से बचाव रहने वाला है । क्योंकि कुछ लोग इसका शर्बत बनाकर पीते हैं, जो काफी ठंडक देने में मदद करता है ।
किसी बीमारी को ठीक करने के लिए अगर इसका सेवन करना हो तो डॉक्टर के मुताबिक दिन में 2 से 4 ग्राम तक या फिर इसकी जगह 50 से 100 मिलीलीटर इसके काढ़े का सेवन कर सकते हैं । हालाँकि बिना डॉक्टर से पूछे इसका सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि उम्र के हिसाब से और इसकी जड़ का सेवन ज्यादा होने से इन्सान की नर्व कमजोर होने का खतरा होता है ।
इसकी ठंडी तासीर को देखते हुए गर्मियों में इसका सेवन ज्यादा ना करें क्योंकि इससे अन्य समस्याएँ पैदा हो सकती हैं जैसे कि पेट, उल्टी, गुर्दे आदि की समस्या । इसका सेवन सीमित मात्रा में और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हर रोज नहीं बल्कि कुछ दिनों बाद किया जा सकता है । किसी समस्या को ठीक करने के लिए जटामांसी का सेवन किसी भी मौसम में कर लेना चाहिए और यह आयुर्वेदिक औषधि भी है ।